श्री रामसहाय के चार पुत्र तथा तीन कन्याएँ थी-सर्वश्री गनपत सहाय, महावीर प्रसाद, मनमोहन लाल व हरिकृष्ण वर्मा तथा रूपरानी, छबिरानी एंव नन्दरानी।
श्रीमती रूपरानी श्री रायसाहब बाबू हरिप्रसाद वर्मा छीतेपट्टी, श्रीमती छबिरानी श्री महेश प्रसाद प्रिंसिपल जी0आई0सी0 तथा श्रीमती नन्दरानी बाबू जगतनारायण वर्मा, एडवोकेट, सुलतानपुर के साथ ब्याही गई। इसी श्रृंखला में श्री राजकृष्ण वर्मा व श्री अविनाशचन्द्र वर्मा भी थे। इसी क्रम में ननिहाल पखरौली की परम्परा में श्री जयकरन नाथ वर्मा(इंजीनियर) प्रबन्ध समिति के सम्मानित सदस्य है।
गनपत सहाय की हाईस्कूल तक सुलतानपुर में व इसके बाद इलाहाबाद में हुई। उन्होनें 1904 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी0ए0 की डिग्री अंग्रेजी विषय में विशेष योग्यता सहित प्राप्त की और उन्हें "जालान" स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
सन् 1905 में बाबू साहब कांग्रेस के सदस्य बने। 1906 ई0 में एल0-एल0बी0 की डिग्री प्राप्त की, विशिष्ट दक्षता के आधार पर उन्हें म्योर सेन्ट्रल कॉलेज, जो उस समय की उत्तर प्रदेश की सर्वोच्च शिक्षण संस्था थी, में अंग्रेजी विभाग में लेक्चरर नियुक्त किया गया। यह पहला उदहारण था जब मात्र स्नातक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को लेक्चरर पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
बाबू गनपत सहाय जी का स्वाधीनता एंव राष्ट्रसेवा में किया गया महनीय योगदान-
सन् 1905 - बंग-भंग आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण लेक्चरर पद से त्याग पत्र देकर राष्ट्र-भक्ति का अनूठा       मिसाल प्रस्तुत किया।
सन् 1914 - डॉ0 एनीबेसेन्ट के होम रूल आन्दोलन में भाग लिया।
सन् 1917 - किसान आन्दोलन जो बाबा रामचन्द्र, केदारनाथ, देवनारायण पाण्डेय व बाबा रामलाल द्वारा चलाया जा       रहा था, उसमें सहयोग व कानूनी सहायता देते रहे।
सन् 1920 - महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के समय वकालत की प्रैक्टिस छोड़कर जनपद की पदयात्रा की और       आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।
सन् 1921 - आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में विश्वविद्यालय छोड़कर आन्दोलन में भाग लेने वाले विद्यार्थियों का मार्ग       प्रशस्त किया और सम्पूर्ण व्यवस्था का प्रबन्धन किया।
सन् 1921 - आनन्द भवन, प्रयाग में उत्तर प्रदेश कमेटी की अध्यक्षता करते हुए 51 सदस्यों के साथ गिरफ्तारी के       फलस्वरूप एक वर्ष की सजा काटी।
सन् 1924 - सर्वसम्मति से नगर पालिका, सुलतानपुर के चेयरमैन चुने गये।
सन् 1929 - महात्मा गांधी का भव्य स्वागत किया और उन्हें रू० 10000/- की थैली भेंट की।
सन् 1931 - डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, सुलतानपुर के चेयरमैन चुनें गये और 1948 तक निरन्तर पदासीन रहे।
सन् 1934 - अपनी धर्मपत्नी (स्व0) केशकुमारी के नाम से इंटर कॉलेज की स्थापना की। जनपद में लडकियों का यह       पहला इंटर कॉलेज बना।
सन् 1940 - रूपईपुर की सभा में डॉ0 राममनोहर लोहिया, केदारनाथ आर्य और डॉ0 गणेश कृष्ण जेटली के साथ भाषण       के दौरान गिरफ्तार किये गये। उत्तर प्रदेश में वे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें इतनी लम्बी सजा दी गयी।
सन् 1942 - अखिल भारतीय कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन से लौटते समय उन्हें स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया।       सुलतानपुर से देवली नजरबन्द शिविर में प्रदेश के बड़े नेताओं सर्व श्री आचार्य नरेन्द्र देव, कृष्णदत्त       पालीवाल, पुरूषोत्तमदास टण्डन, रफी अहमद किदवई आदि के साथ नजरबन्द किये गये। इस प्रकार       भारतीय स्वतंतत्रा संग्राम के अग्रिम पंक्ति के सेनानी के रूप में चर्चित हुए।
सन् 1945 - उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए कांग्रेस टिकट पर भारी बहुमत से विजयी हुए।
सन् 1953 - नगर पालिका सुलतानपुर के पुन: अध्यक्ष चुने गये।
सन् 1954 - जमीदारी उन्मूलन के मुकदमें में उत्तर प्रदेश की तरफ से हाईकोर्ट इलाहाबाद में पैरवी हेतु एडवोकेट       नियुक्त हुए।
सन् 1961 - सुलतानपुर उत्तरी लोकसभा सीट से उप चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ा और       कांग्रेस उम्मीदवार मा० श्री के0सी0 पन्त को हराकर राजनीति के क्षेत्र में अपना वर्चस्व प्रमाणित किया।
सन् 1967 - कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी रहे।
सन् 1967 - अपना सर्वस्व दान देकर गनपत सहाय डिग्री कॉलेज की स्थापना की, जो नगर के प्रथम आदर्श       महाविद्यालय के रूप में गौरव हासिल किया।
सन् 1969 - 8 मार्च 1969 को विलंगटन नर्सिंग होम, दिल्ली में देहावसान हो गया।